महमूद गवाँ ईरान के गावाँ नामक स्थान का निवासी था। वह गिलन के शासक के मन्त्री का पुत्र था। मंत्री के घर जन्म होने के कारण इसका पालन पोषण उत्तम ढंग से हुआ। इसने बाल्यकाल में अरबी और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। बड़े होने पर इसने व्यापार आरम्भ किया तथा भारत में व्यापारी के रूप में ही आया था। बहमनी वंश के सुल्तान हुमायूँ इसके गुणों से बड़ा प्रभावित हुआ और उसने उसको राजकीय सेवा में स्थान दिया। हुमायूँ के अल्पव्यस्क उत्तराधिकारी के काल में उसे उन्नति करने का अवसर प्राप्त हुआ। अपनी योग्यता एवं स्वामीभक्ति के कारण वह सम्पूर्ण राज्य का भार सँभालने लगा। मुहम्मद शाह तृतीय के काल में वह प्रधानमंत्री बनाया गया। इस प्रकार वह अपनी प्रतिभा के बल पर उच्चतम पद पर आसीन हुआ। इसने पच्चीस वर्ष तक बहमनी वंश की अपूर्व सेवा की तथा अपनी स्वामीभक्ति एवं ईमानदारी का प्रदर्शन किया।
महमूद गवाँ के कार्य:
महमूद गवाँ का सबसे बड़ा योगदान शासन-सम्बन्धी कार्यों में है। वास्तव में वह बहमनी राज्य के लिए एक वरदान था। उसने वे ही कार्य किये जिनके द्वारा राज्य के गौरव तथा मान में वृद्धि हो।
शासन-सम्बन्धी सुधार : उसने बहमनी राज्य के शासन-प्रबन्ध को सुव्यवस्थित करने की ओर ध्यान दिया। उसने सम्पूर्ण राज्य को आठ प्रान्तों में बाँटा और हर एक प्रान्त में एक-एक प्रान्ताध्यक्ष नियुक्त किया एवं प्रान्ताध्यक्ष के अधीन केवल एक दुर्ग रखा। प्रान्त के अन्य दुर्गों को सैनिक पदाधिकारियों के नियंत्रण में रखा जो प्रान्ताध्यक्ष के प्रति उत्तरदायी न होकर सुल्तान के प्रति उत्तरदायी होते थे। फलस्वरूप प्रान्ताध्यक्ष विद्रोही नहीं हो सकते थे। उसने प्रान्ताध्यक्षों के अधिकारों को भी बहुत ही सीमित कर दिया। उसने एक शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की।
सेना-सम्बन्धी सुधार : उसने सैनिक व्यवस्था को भी उन्नत किया। सैनिकों के वेतन में वृद्धि की, जागीर-प्रथा का अन्त किया तथा सैनिकों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की। सैनिकों को अच्छे घोड़े रखने का आदेश भी दिया और सैनिकों को योग्य प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की। सेना में अनुशासन की भावना भरी गयी।
आर्थिक सुधार : उसने राज्य की अर्थव्यवस्था को ठीक करने का प्रयास किया। राज्य की भूमि की उसने पैमाइश करवा कर लगान निश्चित किया जो नकद अथवा अनाज के रूप में दिया जा सकता था। अकाल या संकट के समय किसानों को हर प्रकार की सुविधा देने का प्रबन्ध किया गया। उसने अकाल का धैर्यपूर्वक मुकाबला किया और किसानों की दशा ठीक करने का अथक प्रयत्न किया। विजय एवं विद्रोह-दमन : महमूद गवाँ केवल एक योग्य प्रशासक ही नहीं था अपितु एक कुशल सेनापति तथा विजेता भी था। उसने बीजापुर के बेलगाँव दुर्ग को जीता साथ ही काँची तथा गोआ एवं कोंकण के प्रदेशों को जीतकर उसने बहमनी साम्राज्य की वृद्धि की। उसने तेलंगना का विद्रोह भी बड़ी वीरता तथा योग्यता से दबाया।
अन्य कार्य : न्याय-व्यवस्था में भी उसने अनेक सुधार किये तथा बेईमानी, घूस, लूट आदि का कठोरतापूर्वक दमन किया। दरबार में प्रचलित दलबन्दी तथा षड्यंत्रों का दमन किया तथा स्वयं को मुक्त रख कर सभी दलों के साथ समान रूप से व्यवहार किया। वह अत्यन्त ईमानदार व्यक्ति था तथा उसके आचरण का अमीरों पर यथेष्ट प्रभाव पड़ा।
महमूद गवाँ का वध:
महमूद गवाँ की सफलता को देखकर अमीर उससे ईर्ष्या करने लगे तथा उनमें असन्तोष उत्पन्न हुआ और उसका विरोध करने लगे। इस समय अमीरों के दो दल थे। एक ईरानी और दूसरा भारतीय। भारतीय अमीरों ने उसके विरुद्ध एक षड्यन्त्र रचा। उन्होंने सुल्तान के सम्मुख उसकी शिकायतें की। उन्होंने महमूद गवाँ की मोहर रखने वाले को अपनी ओर मिला लिया और एक कोरे कागज पर मोहर लगवा ली और उस पर बहुत-सी बातें लिखीं तथा उसको सुल्तान के सामने पेश किया जिसे देखकर उसे अमीरों की शिकायतों पर विश्वास हो गया।
नशे में धुत सुल्तान ने पूछा यदि मेरा कोई दास अपने उपकारी के विरुद्ध विद्रोह करे और यदि उसका अपराध सिद्ध हो जाय, तो उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए। इस पर महमूद गवाँ ने उत्तर दिया, वह अभागा जो श्रीमान के प्रति विश्वासघात करे, वह तलवार का भागी है। इस पर सुल्तान ने उसे वह जाली पत्र दिखलाया तथा उसके वध का आदेश दे दिया। इस प्रकार निर्दोष महमूद गवाँ का 1481 ई. में वध किया गया। महमूद गवाँ की मृत्यु के बाद ही बहमनी वंश का पतन प्रारम्भ हो गया। बाद में जब सुल्तान को अमीरों के षड्यन्त्र का पता चला तो उसे महमूद गवाँ की मृत्यु का उसे बड़ा दुःख हुआ।
महमूद गवाँ का व्यक्तित्व महान था। उसमें राज्य के प्रति भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। शासक की दृष्टि से वह मध्यकाल के किसी भी शासक अथवा राजनीतिज्ञ से कम न था। वह एक प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति था। वह साहित्यकार था और उसने रौजत-अल-इन्शा तथा दीवान-ए-अश्र नामक दो काव्यों की रचना की। वह विद्वानों का आश्रयदाता था। वैद्यक का वह प्रकाण्ड पंडित था। इसका अपना पुस्तकालय था जिसमें लगभग तीन हजार पुस्तकें थीं।
बीदर में उसने एक विद्यालय की स्थापना की तथा उसमें अपनी अधिकांश सम्पत्ति लगा दी। छात्रों को वह छात्रवृत्ति भी दिया करता था। उसने अपनी सारी पुस्तकें बीदर विद्यालय में दानस्वरूप दे दी थीं। वह दीनदुखियों के प्रति सहानुभूति रखता था। वह उदार, दयालु, साहसी तथा न्यायप्रिय था। शुक्रवार की रात्रि को दुर्बलों एवं दरिद्रों के घर जाकर उनकी यथाशक्ति सहायता करता था। वह अत्यन्त सभ्य व्यक्ति था और दिनभर कठिन परिश्रम करने के बाद शाम को विद्वानों का सत्संग किया करता था। वह मध्य युग के चारित्रिक दोषों से सर्वथा मुक्त था।
उसका व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त सादगीपूर्ण था। वह अपने ऊपर केवल दो रुपये व्यय करता था। वह चटाई पर सोता था तथा मिट्टी के बर्तनों में भोजन करता था। वास्तव में वह बहमनी वंश का सर्वश्रेष्ठ पदाधिकारी एवं प्रशासक था। सुल्तान ने एक बार उसके बारे में कहा था “खुदा ने उसे दो अमूल्य वरदान दिये हैं-एक विशाल साम्राज्य तथा दूसरा महमूद गवाँ जैसा सेवक”। वह एक निष्ठावान व्यक्ति था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में “उसके समस्त कार्य को एक शब्द में व्यक्त किया जा सकता है और वह है निष्ठा। बहमनी वंश की सेवा में उसकी निष्ठा थी, राज्य के सीमा विस्तार में उसकी निष्ठा थी और शासनतंत्र के सुधार में भी उसकी निष्ठा थी।”
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