झारखण्ड का वैदिक काल (Vedic Period of Jharkhand)
झारखण्ड के वैदिक काल को 1500 BC(Before Christ) से 600 ई. पू. के बीच माना गया है। वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है।
- ऋग्वैदिक काल 1500 ई. पू. – 1000 ई. पू. तक
- उतर वैदिक काल 1000 ई. पू. – 600 ई. पू. तक
ऋग्वैदिक काल : ऋग्वैदिक काल से ही भारत में आर्यों का आगमन माना जाता है। लेकिन ऋग्वैदिक काल में झारखण्ड में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है। ऋग्वैदिक काल में केवल प्रकृति की ही पूजा की जाती थी। इस काल में कोई भी मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था। देवी देवता की पूजा ऋग्वैदिक काल में नहीं की जाती थी।
उतर वैदिक काल : ऐसा माना जाता है उतर वैदिक काल से ही भारत में संस्कृति का विकास होना आरंभ हुआ था। उतर वैदिक काल से ही मंदिरों का निर्माण होना शुरू हुआ था। भारत में जीतने सरे सभ्यता का विकास हुआ है सभी नदी के किनारे बसने से आरंभ हुआ है। जब भी कोई सभ्यता भारत आते थे, वो नदी के किनारे ही अपना जीवन-यापन किया करते थे। उतर वैदिक काल के ग्रंथो से यह पता चलता है कि आर्य सभ्यता धीरे- धीरे पूरब और दक्षिण के तरफ बढ़ने लगे। उतर वैदिक काल में लोहा संस्कृति पूरी तरह प्रसारित हो चुकी थी। इसी काल में ही झारखण्ड में आर्यो का बसाव होने लगा था। झारखण्ड में अब असुरों के साथ- साथ आर्य लोग भी रहने लगे थे।
धार्मिक आंदोलन
- बौध्द धर्म
- जैन धर्म
बौध्द धर्म :
बौध्द धर्म का झारखण्ड क्षेत्र से गहरा संबंध था। झारखण्ड में अनेक बौध्द मूर्तियां, बौध्द अवशेष मिले है, इससे पता चलता है कि बौध्द धर्म का प्रचार प्रसार झारखण्ड में हुआ था। महात्मा बुध का जन्म 563 ई. पू. में हुआ था। महात्मा बुध जब 35 वर्ष के थे तभी उन्हें निर्वाण की प्राप्ति गया में पीपल पेड़ के नीचे हुआ था। ज्ञान प्राप्ति के बाद ही उनका प्रवेश झारखण्ड में हुआ था। इस समय में झारखण्ड के क्षेत्रों में असुर संस्कृति पूरी तरह विकसित हो गई थी। साथ ही साथ झारखण्ड के क्षेत्रों में लोहा संस्कृति भी विकसित हो गई थी। ऐसा माना जाता है 600 ई. पू में झारखण्ड के क्षेत्रों में मुंडाओं का भी प्रवेश हो चुका था। जिसके परिमाण स्वरूप झारखण्ड में असुरों और मुंडाओं के बीच
संघर्ष प्रारम्भ हो गया था।
प्रमुख बौध्द स्थल :
झारखण्ड में बौध्द धर्म के लिए महत्वपूर्ण बौध्द स्थल पलामू, हजारीबाग, रांची, गुमला, जमशेदपुर, खूंटी, धनबाद, चतरा आदि क्षेत्रों में
है क्योंकि इन क्षेत्रों में उनके स्मारक और मुर्तिया की अवशेष मिले है।
- पलामू में एक गांव है जिसका नाम मुर्तिया है वहाँ बुद्ध की अनेक मुर्तिया पाई गई है। साथ ही साथ पलामू के करुआ गांव में
एक बुद्ध स्तूप मिला है। - हजारीबाग के सूर्य कुंड में बुद्ध की मूर्ति मिली है।
- गुमला जिले के केतुवा गांव में बुद्ध प्रतिमा मिली है।
- जमशेदपुर जिले में बुद्ध प्रतिमा मिली है।
- खूंटी के बेलवादाग गांव में बुद्ध टीला मिला है।
- धनबाद जिले के बुधपुरा और दालमी गांव बौध्द धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
जैन धर्म :
जैन धर्म बौध्द धर्म से पुराना धर्म माना जाता है क्योंकि जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर महावीर स्वामी का जन्म 540 ई. पू. हुआ था। तथा जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर पारसनाथ का जन्म महावीर स्वामी से पहले 250 ई. पू गिरिडीह जिले में स्थित पहाड़ पर निर्वाण प्राप्त हुआ। इसलिए गिरिडीह में स्थित उस पहाड़ का नाम पारसनाथ रखा गया है। जिसकी ऊंचाई 1365 मीटर है। यह पारसनाथ पहाड़ झारखण्ड की सबसे ऊंची छोटी में स्थित है। प्राचीन काल में झारखण्ड में जैन धर्म का केंद्र स्थल मानभूम था। लेकिन जैन धर्म का प्रचार प्रसार पुरे झारखण्ड
में था। इसी कारण वंश झारखण्ड में बहुत सरे स्थानों पर जैन धर्म के अवशेष पाए गए है।
प्रमुख जैन स्थल :
देवली, पवनपुर, पकबिरा, बलरामपुर तुईसामा, गोलमारा, कतरास, दामोदर कसाई नदियों के क्षेत्र, गोड़ाम, पलामू जिले के हनुमांड़ गांव
स्थित प्रमुख जैन स्थलों से जैन धर्म के प्रसार का साक्ष्य मिलता है।
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