मेरी प्रिय पुस्तक: यह एक हिंदी निबंध है जिसमे रामचरितमानस पुस्तक को मेरी प्रिय पुस्तक के रूप में बखान किया गया है। इस निबंध में 500 से ज्यादा सब्दों का प्रयोग किया गया है। यह निबंध माध्यमिक से लेकर स्नातक तक के विद्यार्थियों के पठान में उयोगी होगी।
मेरी प्रिय पुस्तक ‘रामचरितमानस’ हिंदी निबंध
पुस्तकें अनेक हैं-धर्म के, विज्ञान के, समाज विज्ञान के, इतिहास से, दर्शन के और साहित्य के। पुस्तकों का इतिहास जितना पुराना है, पुस्तकों के प्रति मनुष्य के प्रेम का इतिहास भी उतना ही पुराना है। विश्व-श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों की सूची बड़ी लम्बी है। भारत में वाल्मीकि, कालिदास, भवभूति, माघ, श्रीहर्ष, वाणभट्ट, दंडी, तुलसी, सूर, कबीर, जायसी, मीरा, रसखान, बिहारी, घनानंद, प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी, प्रेमचंद, और अज्ञेय आदि अनेक साहित्यकारों और कवियों की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं। वेद हैं, उपनिषद् हैं और अरण्यक हैं। विश्व की भी अच्छी रचनाएँ-होमर, गेटे, टाल्सटाय, कीट्स, बायरन, शेली, चौसर, शेक्सपीयर, हेमिंग्वे, सार्च, कामू, हाली, इकबाल, जोश, मीर, फैज आदि की हैं। पर धर्म, दर्शन और विज्ञान को छोड़कर मेरी रुचि साहित्य में है।
साहित्य में भी मुझे कविता सबसे ज्यादा पसंद है। कवियों में भी मुझे तुलसी सबसे अच्छे लगे हैं। तुलसी ढेर सारी रचनाओं में मुझे ‘रामचरितमानस’ ही सर्वश्रेष्ठ लगा है। ‘रामचरितमानस की प्रशंसा मैं क्या करूं? देश-विदेश के अनेक मान्य विद्वानों ने ‘मानस’ की प्रशंसा की है। ‘रामचरितमानस क्या नहीं है? वह भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, जन, और साहि का विश्व-कोष है। मानस सर्वश्रेष्ठ काव्य है। महाकाव्यात्मक गरिमा और दृष्टि (Epic vision) का यह अद्भुत संयोग है। ‘रामचरितमानस’ पर जिस दृष्टि से विचार कीजिये यह गौरव ग्रंथ खरा उतरेगा। भाव और शिल्प की दृष्टि से (Structure-Craft) की दृष्टि से, कथा और चरित्र की दृष्टि से, मानव जीवन के लिए संदेश की दृष्टि से, मन और हृदय को आनंद (Pleasure) प्रदान करने की दृष्टि से यह महाकाव्य अद्वितीय है।
इसकी कथा अत्यंत मार्मिक है। इसमें इतने मार्मिक प्रसंग हैं कि व्यक्ति का हृदय द्रवित हो उठता है। इस महाकाव्य ने भाई और भाई के बीच के प्रेम और त्याग का विलक्षण आदर्श (Ideal) रखा है। राम हैं जो पिता की आज्ञा से राज्य छोड़कर वन चले जाते हैं। भरत हैं कि भाई के प्रेमवश मिला राज्य ठुकरा देते हैं। लक्षमण राम के साथ वन केवल भ्रातृ-प्रेम के कारण ही जाते हैं। राम-लक्षमण और भरत के चरित्र अद्वितीय हैं, लाशानी हैं। सीता ने पतिभक्ति का आदर्श स्थापित किया है। वास्तव में ‘रामचरितमानस’ में शील का जितना ऊँचा आदर्श स्थापित हुआ है, वैसा कहीं और देखने को नहीं मिलता। राजा और प्रजा का संबंध, ऊँच और नीच का संबंध, भाई और भाई का संबंध, पति और पत्नी का संबंध, माता और पुत्र का संबंध, पुत्रवधू और सास का संबंध, बेटी और माँ का संबंध, गुरु और शिष्य का संबंध, वनवासी और नागरिक का संबंध-इन सभी के संबंधों की मधुरता (मिठास), हार्दिकता, और निश्छलता का श्रेष्ठ आदर्श हमारे सामने रखा गया है। एक आदमी को अच्छा बनने की अच्छी प्रेरणा इस ग्रंथ से मिलती है।
एक भक्त अपने लिए इसमें भक्ति का मूल-मंत्र पाता है। एक दार्शनिक और विचारक को विचार और चिंतन के लिए अक्षय स्रोत मिलता है। एक समाजसुधारक को समाज में सुधार लाने के लिए मार्गदर्शन मिलता है। एक शासक को शासन का आदर्श मिलता है। साधारणजन को अपने अधिकार और कर्त्तव्य का सबल बोध प्राप्त होता है। काव्यप्रेमी के लिए काव्य-रस, भक्त के लिए भक्तरस, सामाजिक के लिए समाज-रस, दार्शनिक के लिए दर्शन के सूत्र-सिद्धांत-सभी कुछ इस ग्रंथ में एक स्थान पर मिल जाते हैं। अतः सभी ग्रथों से तुलना करने के बाद संत तुलसीदास का यह महान् ग्रंथ मुझे सर्वश्रेष्ठ लगता है। ज्यों-ज्यों मैं इसका अध्ययन करता हूँ, मुझे जीवन के लिए सत्प्रेरणाएँ मिलती चली जाती हैं।
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