पर्यावरण और हमारा संबध: माध्यमिक से लेकर स्नातक तक के बच्चो के लिए हिंदी लेख। यह लम्बी निबंध है जो विद्यार्थियों के परीक्षा से संबधित प्रशनों के हल के लिए तैयार किया गया है। इसमें प्रयोग में लायी गयी सभी तथ्य वर्तमान के आकड़ों से भिन्न हो सकती है। इसका प्रयोग ध्यान पूर्वक करें।
पर्यावरण और हमारा संबध:
कल-कारखानों से निकलते धुएँ और विषैली गैसें सम्पूर्ण वायुमंडल को प्रदूषित कर चुका है। इन कारखानों से विषैली गैसों के रिसावों ने और भी नये खतरे पैदा किये हैं। कीटों से सुरक्षा के नाम पर फसलों पर तरह-तरह के रासायनिकों के छिड़काव, डी.टी.टी. का स्वच्छता के नाम पर प्रयोग, पैदावार की वृद्धि के लिए नाना प्रकार के उर्वरकों के उपयोग आदि ने पर्यावरण को बहुत बड़ी सीमा तक प्रदूषित किया है।
सीमा से अधिक प्राकृतिक साधनों के दोहन के कारण भी पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न हुआ है। वनों की अंधाधुध कटाई के कारण ऋतु चक्र प्रभावित हुआ है। इसी के चलते बारबार अनावृष्टि का सामना करना पड़ रहा है। इसका एक और प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। विनाशकारी बाढ़ों का एक प्रमुख कारण वनों का उजड़ते जाना है। वनों की कटाई के चलते वन्य प्राणियों का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया है। तरह-तरह के पशु-पक्षी भी हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। इनके कारण प्रकृति का संतुलन बना रहता है। परंतु वनों की बर्बादी के कारण कई प्रकार के पक्षियों, पशुओं और वनस्पतियों की प्रजातियाँ शनेःशनैः लुप्त होती जा रही हैं। इन में से तो कई प्रजातियों का अस्तित्व तो पूर्णतः विलुप्त हो चुका है।
यह कोई शुभ लक्षण नहीं है। नदियों का पानी प्रदूषित हो गया है। नदियों की धाराओं में कारखानों की तलछटों, रसायनों एवं अन्य हानिकारक चीजों को बहाया जाता रहा है। शहरों के नालों और गंदगियों का मुँह नदियों की ओर ही खुला है। प्रदूषित जल पीकर पशु बीमार पड़ रहे हैं। मर रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव मनुष्य जाति पर पड़ा है। भारत जैसे विकासशील देश में नगरों-महानगरों में गंदगियों के अम्बार बढ़ते ही जा रहे हैं। एक तो किसी भी शहर में मल वाहन और नालों की प्रणाली ठीक नहीं है, अगर है भी है तो वह ठीक से काम नहीं कर रही है। जगह-जगह मरे पशुओं की सड़ांध, नालियों की सड़ांध, घरों से फेंके गये कूड़ा-कर्कट एवं अन्य प्रकार की गंदी चीजों के ढेर के कारण जलवायु का प्रदूषण भयंकर रूप से बढ़ रहा है। पर्यावरण प्रदूषण का एक कारण आबादी का भयानक विस्फोट भी है। दिनानुदिन दुनिया में आबादी बढ़ती जा रही है। परंतु इतने मनुष्य के रहने-सहने की सुव्यवस्था करने में लगभग विश्व के सभी राष्ट्र असमर्थ रहे हैं।
खुली जगहों में आवासीय भवनों के निर्माण का सपना, सपना बन कर रह गया है। घरों के घेरे तंग होते जा रहे हैं। स्काइस्क्रैपर भवनों और बेतरह भवनों की बढ़ती संख्या ने नगरों और महानगरों का दम घोंट कर रख दिया है। किसी भी आदमी के लिए खुली हवा में साँस लेना मुश्किल हो गया है। पर्यावरण प्रदूषण के और भी कई कारण हैं। परंतु इस प्रदूषण का अंतिम परंतु महत्त्वपूर्ण कारण परमाणु भट्ठियाँ हैं, परमाणु-ऊर्जाओं का उत्पादन है। परमाणुओं के विकिरण से पर्यावरण विषाक्त हो गया है। रह-रह कर कहीं-न-कहीं परमाणु भट्ठियों और कारखानों में दुर्घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इन परमाणु दुर्घटनाओं ने स्थायी तौर से पर्यावरण को क्षति पहुँचायी है। मानव जाति को भयानक रोग दिये हैं।
भविष्य की पीढ़ी को विकलांग पैदा होने को विवश किया है। इसी प्रकार निकट अतीत में कई छोटे बड़े युद्धों में परमाणु अस्त्रों, बॉयलाजिकल बमों का भी प्रयोग हुआ है, जिसने पर्यावरण में महाविनाश की संभावनाएँ पैदा कर दी हैं। पर्यावरण प्रदूषण के कुपरिणामों की गिनती थोड़ी नहीं है। इस प्रदूषण ने मानवजाति को ही नहीं, सम्पूर्ण सृष्टि और पर्यावरण को असीमित क्षति पहुँचायी है। प्रकृति में असंतुलन आया है। ऋतु-चक्र प्रभावित हुए हैं। विकलंगताएँ बढ़ी हैं। तरह-तरह के भयंकर रोगों ने मनुष्यों, पशुओं एवं पंछियों को ग्रस लिया है। यदि पर्यावरण का प्रदूषण इसी तरह बढ़ता गया, तो वह दिन दूर नहीं, जबकि सारी सृष्टि ही विनष्ट हो जायेगी। वैज्ञानिक अध्ययनों ने बताया है कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण आयनोस्फियर में विकृति आ गयी है। इस विकृति ने मनुष्य को भयंकर विनाश की चेतावनी दी है।
मनुष्य पर्यावरण प्रदूषण के कुपरिणामों से परिचित हो रहा है। वह इस प्रदूषण का सीधे-सीधे शिकार हुआ है। इसलिए इस प्रदूषण को रोकने के लिए उसकी सजगता बढ़ी है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक इस समस्या को सुलझाने में लग गये हैं। पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए अनेक उपाय प्रस्तावित हुए हैं। यदि इन उपायों पर अमल उचित रूप से किया गया तो प्रदूषण का बढ़ना रुक जायेगा और शायद प्राकृतिक असंतुलन भी कम हो जाय। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए सर्वप्रथम प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की कोशिश करनी होगी। वनों की कटाई रोकनी होगी। वृक्षारोपण और वनों के वर्द्धन पर ध्यान देना होगा। वन्य जीवों और वनस्पतियों की प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। नदियों एवं अन्य जलस्रोतों को प्रदूषित होने से बचाना होगा। नगरों-गाँवों में मल-जल वाहित प्रणाली की वैज्ञानिक विधि अपनानी होगी। कल-कारखानों के धुंओं, गैसों के रिसाव, उनकी तलछटों आदि से पर्यावरण को बचाना होगा।
सड़कों को दुरुस्त करना होगा। नगर का निवेशन उचित ढंग से करना होगा। वाहनों द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण को रोकना होगा। तरह-तरह के रासायनिक पदार्थों के बेहिसाब उपयोग की रोकथाम करनी होगी। आबादी पर नियंत्रण करना होगा। प्रकृति के असीमित दोहन को रोकना होगा। सबसे अधिक ध्यान परमाणु विस्फोटों और उसके उपयोग को नियंत्रित करने पर केन्द्रित करना होगा। पर्यावरण के प्रति सभी लोगों को जागरूक बनाना होगा। अविकसित देशों के लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा और स्वच्छता की शिक्षा देनी होगी। प्रत्येक राष्ट्र को और वहाँ के लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा, स्वच्छता और संतुलन बनाये रखने की नैतिक जिम्मेवारी लेनी होगी। तभी पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का सकारात्मक हल प्राप्त हो सकेगा।