झारखण्ड में मुण्डा काल ( Jharkhand me Munda Kaal )
मुंडाओं के आगमन की कथा
झारखण्ड के लोकगीत और लोक कथाओं से मुंडाओं के आगमन की कहानी का पता चलता है। ऐसा माना जाता है, जब पृथ्वी जलमग्न थी। तब भगवान महादेव ने कछुआ, केकड़ा एवं जोंक आदि जीव का निर्माण किये । भगवान ने इन जीवों को समुंदर के अंदर से मिट्टी लाने को कहा । इन जीवों ने समुंदर के अंदर से मिट्टी निकालकर दिया, जिससे भगवान ने पृथ्वी का निर्माण किया।
मुंडाओं की भाषा में पृथ्वी को ओते दिशुम कहते है। जिसके बाद भगवान ने पृथ्वी पर अन्य जीव- जन्तुओं का निर्माण किया। उन्ही पशु- पक्षियों में से एक पक्षी के अंडे से लुटकुम हड़म और लुटकुम बुढ़िया का जन्म हुआ। लुटकुम हड़म और लुटकुम बुढ़िया इन्ही दोनों को मुंडाओं के आदि माता- पिता माना जाता है। जिन्हें होडो और होड़ोंको कहा गया।
जब मुंडा जनजाति स्थाई आवास की खोज में आगे बढ़ते जा रहे थे, तब इन्हे रास्ते में खेरवार के सरदार माधव सिंह से युद्ध करना पड़ा। जिसमें मुंडाओं को हार का सामना करना पड़ता है। कहा जाता है इस युद्ध के बाद एक रात जब मुंडाओं के प्रमुख नेता रिसा मुंडा सो रहे थे। तब उन्हें एक सपना आया। उन्हें उस सपने में कहा गया दक्षिण की तरफ जाओ और एक सोना लेकेन की खोज करो। यानि एक सुनहरे देश की खोज करो, वही तुम्हारा सुनहरा देश होगा।
रिसा मुंडा ने यह सपना देखकर एक सफ़ेद मुर्गा को खिला- पीला कर खुला छोड़ दिया। मुंडाओं के मान्यता के अनुसार सफ़ेद मुर्गा उनके लिए शुभ माना जाता है। मुंडा जनजाति का यह मानना था मुर्गा को जहाँ हरियाली और सुरक्षा महसूस होगा। यह मुर्गा वही जाकर रुक जाएगा। इन सभी मान्यताओ के साथ मुंडा जनजाति मुर्गा के पीछे- पीछे चलते हुए झारखण्ड में आए।
झारखण्ड में मुण्डा काल
ऐसा माना जाता है कि झारखण्ड में मुंडाओं का प्रवेश 600 BC में हुआ था। झारखण्ड में मुण्डा काल 600 BC से 84 AD तक माना जाता है। झारखण्ड में एक साथ 21000 मुंडाओं ने प्रवेश किया था। मुंडाओ के प्रथम राजा रीसा मुंडा थे। एवं मुंडाओं के अंतिम राजा मदरा मुंडा थे। झारखण्ड में सर्वप्रथम मुंडा जनजाति ने ही राज्य निर्माण कि प्रक्रिया प्रारंभ कि थी। रिसा मुंडा ने सुतिया पाहन नामक व्यक्ति को मुंडाओं का शासक नियुक्त किया था। सुतिया पाहन ने अपनी योग्यता कि परिचय देते हुए ‘सुतिया नागखंड ‘ नामक राज्य कि स्थापना की । सुतिया पाहन ने सुतिया नागखंड को 7 गढ़ों में बाट दिया। एवं 7 गढ़ों को 21 परगनों में और 21 परगनों को 151 गांव में विभक्त किया ।
सुतिया नागखंड के 7 गढ़ :
- लोहागढ़ (लोहरदगा)
- पालूनगढ़ (पलामू )
- हजारीबाग
- मानगढ़ (मानभूम)
- सिंहगढ़ (सिंहभूम)
- केसलगढ़
- सुरगुगगढ़ (सरगुजा)
सुतिया पाहन ने इन सात गढ़ों को 21 परगनों में विभाजित किया जो कुछ इस प्रकार है –
21 परगनों |
1. | दोईसा | 08. | बिरना | 15. | खरसिंग |
2. | खुखरा | 09. | बिरुआ | 16. | चंगमंगकर |
3. | ओमदण्डा | 10. | लचरा | 17. | लोहारडीह |
4. | सुगुजा | 11. | गीरगा | 18. | उदयपुर |
5. | जसपुर | 12. | बेलसिंग | 19. | कोरया |
6. | गंगपुर | 13. | बेलखादर | 20. | बोनाई |
7. | पोड़हाट | 14. | सोनपुर | 21. | तमाड़ |
सुतिया पाहन ने 21 परगनों को 151 गांव में विभक्त किया और इस प्रकार संपूर्ण झारखण्ड पर मुंडाओं का राज्य स्थापित कर दिया। मुंडाओं के
काल 600 BC से 84 AD तक झारखण्ड में माने जाते है।
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