History of Jharkhand : झारखण्ड का इतिहास भारतीय इतिहास में एक अलग महत्वपूर्ण जगह रखता है। इतिहास का अध्ययन अनेक स्रोतों से किया जाता है जैसे ऐतिहासिक स्रोत एवं पुरातात्विक स्रोत जो प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक जो भी साक्ष्य प्रात हुए है। उस साक्ष्य का अध्ययन कर हम झारखण्ड का इतिहास को जानेंगे । झारखण्ड में जो साक्ष्य प्राप्त हुए है, उनमें पत्थर के उपकरण , हस्तकुठार , स्मारक , भवन, चित्र, साहित्य , अभिलेख , औजार , बर्तन , मुर्तिया एवं मंदिर आदि पाए गई है।
पुरातात्विक स्रोत : झारखण्ड में पाई जाने वाले पुरातात्विक स्रोत
स्थान | अवशेष |
बेनूसागर( सिंहभूम ) | सातवीं शताब्दी की जैन मूर्तियाँ |
नामकुम ( राँची ) | ताँबे तथा लोहे के औजार |
चंदन शहीद पहाड़ी ( राँची ) | अशोक के शिलालेख |
इस्को( हजारीबाग ) | सूर्य मंदिर |
अरजीमुकीमपुर( संथाल परगना ) | बरदारी इमारतों के अवशेष |
सीतागढ़ा पहाड़ ( हजारीबाग ) | बौद्ध मठ |
लोहरदगा | काँसे का प्याला |
दुमदुमा ( हजारीबाग ) | शिवलिंग |
दूधपानी ( हजारीबाग ) | आठवीं शताब्दी के अभिलेख |
भवनाथपुर( गढ़वा ) | आखेर के चित्र |
लूपगढ़ी | कब्रगाह के अवशेष |
मुरद | ताँबे की सिकड़ी , काँसे की आँगूठी |
पलामू किला | बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में मूर्ति |
दलमी पुरातात्विक स्थल | स्वर्ण रेखा नदी के किनारे |
इटखोरी | गुप्तकालीन अवशेष |
झारखण्ड की इतिहास एवं संस्कृति प्राचीन काल से लेकर वर्त्तमान काल तक गौरवशाली परम्परा रही है। यहाँ की संस्कृति को जानने और समझने के लिए हमें ऐतिहासिक स्रोत को भी जानना होगा। झारखण्ड की जनसंख्या में विश्व की सभी प्रमुख मानव प्रजातियाँ प्रोटो- ऑस्ट्रेलॉयड , मंगोलॉयड, काकेसाइड, यथा- नीग्रॉयड के शारीरिक लक्षण पाए गए है। इन सभी जनजातियों में प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉयड जनजाति की प्रधानता सबसे अधिक है।
प्रागैतिहासिक काल :
प्रागैतिहासिक काल से संबंधित झारखण्ड में विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के उपकरण पाए गए है। राज्य के प्रागैतिहासिक इतिहास को यहाँ पाए गए पाषाण उपकरणों के विशेषताओं के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है-
- पुरापाषाण काल (Paleolithic Age)
- मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age)
- नवपाषाण काल (Neolithic Age)
पुरापाषाण काल (Paleolithic Age) :
जब मनुष्य पाषाण युग में थे, तब वो अपने जीवन-यापन के लिए जानवरों का शिकार पत्थरों से किया करते थे। जंगली जानवरों से बचाऊ के लिए भी बड़े-बड़े पत्थरों का उपयोग किया करते थे। राज्य के हजारीबाग, रांची , पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम बोकारो जिले में कराए गए उत्खनन से पुरापाषाण कालीन चित्रकारी के प्रमाण तथा पाषाण उपकरण जैसे फलक , कुल्हाड़ी , खुरचनी तक्षिणी प्राप्त हुए है।
मध्यपाषाण काल (Mesolithic Age) :
मध्य पाषाण काल झारखण्ड में 11000 BC से 6000 BC के बीच माना गया है। इस युग में मनुष्य जानवरों के शिकार के लिए नोखिले पत्थरों के औजार का उपयोग कर जानवरों का शिकार किया करते थे। यह उपकरण अर्धचंद्राकार एवं ज्यामिति आकर के होते थे। मध्यपाषाण काल में ही प्राथमिक कृषि तथा पशुपालन का आरंभ हुआ। इस काल में मनुष्य स्थाई आवासों का निर्माण करने लगे थे। इस काल से ही लोग जानवरों के साथ ही साथ फल फूल , कीड़े मकोड़े तथा पक्षियों को भी खाने लगे थे। राज्य में हुए उत्खनन से पलामू , दुमका , धनबाद , रांची , पश्चिमी सिंहभूम एवं गढ़वा जिले के भवनाथपुर हाथीगाय , बालूगारा , एवं नाकगढ़ में पाषाण कालीन उपकरण प्राप्त हुए है।
नवपाषाण काल (Neolithic Age) :
नवपाषाण काल झारखण्ड में 6000 BC से 4000 BC के बीच माना गया है। इस युग में मनुष्य पत्थरों के नोकीले औजार भाला , कुल्हाड़ी , खुरचनी , तक्षणी बना कर जानवरों का शिकार किया करते थे। और साथ ही साथ अपने बचाऊ के लिए भी इन भालो का उपयोग भी किया करते थे। नवपाषाण काल युग में ऐसा माना जाता है कि लोग भोजन एकत्र करने लगे थे और साथ ही साथ पशुपालन करने लगे थे। इस काल में ही मनुष्य मिट्टी के बर्तन बनाने लगे थे। ऐसा माना जाता है नवपाषाण काल में ही असुर जनजाति जो झारखण्ड कि सबसे पुरानी जनजाति है, वो इसी काल में झारखण्ड में प्रवेश किए थे। झारखण्ड राज्य में बालूगारा, भवनाथपुर, झरवार नकगढ़ , चाईबासा , रांची ,लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि से कुल्हाड़ी , खुरचनी , तक्षणी हस्तकुठारी जैसे नवपाषाण उपकरण पाए गए है।
तांबा युग (Copper Age) :
झारखण्ड में तांबा कि खोज 4000 BC से 3000 BC के बीच सिंहभूम क्षेत्र में हुआ था। इस युग में ही बिरहोर और बिरजिया जनजाति झारखण्ड क्षेत्र में पाए जाने लगे थे। सिंहभूम क्षेत्र के खानों से असुर, बिरहोर और बिरजिया जनजाति खानों से अयस्क निकालकर उसे गलाने का काम किया करते थे। सिंहभूम क्षेत्र में उत्खनन के दौरान कई तांबे की कुल्हाड़ी पाई गई है। हजारीबाग क्षेत्र के बाहरगंडा नामक स्थान में 49 तांबे की खानों के अवशेष मिले है।
कांस्य युग(Bronze Age) :
कांस्य युग झारखण्ड में 3000 BC से 2000 BC के बीच माना जाता है। तांबे के बाद असुर, बिरहोर और बिरजिया जनजाति ने ही कांस्य की खोज की थी।
लोहा(Iron Age) :
झारखण्ड में लोहा युग 2000 BC से 1000 BC के बीच माना जाता है। लोहे का खोज झारखण्ड में असुर जनजाति ने किया था।
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